नेहरु के व्यक्तित्व और उनके विचारों को तथा हिंदुस्तानी सिनेमा में उसके चित्रण को ठीक से समझने के लिए विस्तार से लिखे और पढ़े जाने की ज़रूरत है।
The 1930s of Indian Cinema and Gender Questions
Few articles on cinema written by women and some reports and comments published in various periodicals in the 1930s give us a fair idea of the public sphere.
‘नया दौर’ और 1957 का साल
'नया दौर' के तेवर और उसकी बहुआयामी राजनीति उन समझदारियों को ख़ारिज़ करते हैं, जिनका मानना है कि मेलोड्रामाई पॉपुलर सिनेमा अराजनीतिक होता है और पारंपरिक मूल्यों को अपने स्टिरीयो-टाइप फॉर्मूले में ढोता है.
वी. शांताराम: भारतीय सिनेमा के अण्णा साहेब
शांताराम की उपलब्धियों और उनके महत्व का आकलन ठीक से तभी हो सकता है, जब हम उनकी फिल्मों के साथ-साथ सिनेमाई इतिहास में उनके योगदान को हर आयाम से समझने का प्रयास करें.
Cinematic Secularism of Dharmputra
Dharmputra (Yash Chopra, 1961) is one of the most remarkable films that engage with the problematic theme of communalism set against the background of Partition of India.