इंग्लैंड के जिन इलाक़ों में ब्रेक्ज़िट के पक्ष में ज़्यादा वोट पड़ा था, वहाँ लेबर पार्टी को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है.
ब्रिक्स: एक विफल अभियान!
ब्रिक्स का पतन महाशक्तियों की नीतियों की वैधता के लिए जरूरी है.
आतिश तासीर का वैचारिक भ्रम
औपनिवेशक जैसा पूरी तरह हो जाने की आकांक्षा आतिश तासीर में भी है.
नेक्रोफिलिया है ‘द डर्टी पिक्चर’
अब तक पुरुष पुरुष होने की ग्रंथि से पीड़ित था, अब वह नेक्रोफिलिया का रोगी है. चिंता तब बढ़ जाती है जब यह रोग सामूहिक हो जाता है.
Some Sufi Tales and A Desperate Housewife
Everything seems so alright. And, then a manuscript enters her life.
यह है छठ पूजा
कांच ही बांस के बहन्गिया बहंगी लचकत जाये होईं न बलम जी कहंरिया बहंगी घाटे पहुंचाए…..
धुर-दक्षिणपंथ का आदर्श जोसेफ मैकार्थी
मैकार्थी के इस दक्षिणपंथी हमले के शिकार कई लोग आज दुनिया भर में आदरणीय हैं. कुछ नाम तो बीसवीं सदी के महानतम व्यक्तित्व हैं- अल्बर्ट आइंस्टीन, चार्ली चैप्लिन, बर्तोल्त ब्रेष्ट, हॉवर्ड फास्ट, एलेन गिंसबर्ग, पॉल स्वीजी, ऑरसन वेल्स.
‘स्वदेश तुम कहाँ गुम हो गए…’
इस संग्रह को इसलिए भी पढ़ा जाना चाहिए ताकि हमें अपने वर्तमान के उन अँधेरे कोनों, असुरक्षा के भय और तमाम आशंकाओं का संज्ञान हो सके, जिन्हें हम लगातार देखते-बूझते भी नजरअंदाज़ करते रहते हैं.
रवीश कुमार के सम्मान से चिढ़ क्यों!
‘आइटी सेल’ मानसिकता का विषाणु उदारवाद, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की पक्षधरता का दावा करनेवाले के मस्तिष्क को भी संक्रमित कर रहा है.
रॉबर्ट मुगाबे और पश्चिम के पैंतरे
मुगाबे की खामियों और दमन के इतिहास को भी परखा जायेगा, लेकिन आज सबसे जरूरी इस बात की पड़ताल है कि आखिर पश्चिमी देशों को मुगाबे से इतनी चिढ़ क्यों है.
जब पूंजी कांपती है, हम सब कांपते हैं
साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की चिंताजनक छाया एक बार फिर मंडरा रही है। कार्ल मार्क्स का कहना था कि पैसा इतिहास की धारा तय करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है और इस पैसे की धारा तय करनेवाली बैंकिंग व्यवस्था को थॉमस जेफरसन आजादी के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे। आर्थिक मंदी... Continue Reading →
Ravish Kumar on Today’s India
What’s happening cannot be understood without understanding the contours of ultra-nationalism.
Sudhanshu Firdaus : The Young Bard of Trauma
What happens when a mathematician pens poems?
हिंदी सिनेमा में लैला-मजनूँ
सबसे पहले मूक फ़िल्मों के दौर में मदान थिएटर के बैनर से 1922 में लैला-मजनूँ की कहानी को परदे पर उतारा गया.
पत्रकारिता के बाबत कुछ बातें
जनसंचार के छात्रों के साथ एक अनौपचारिक चर्चा में कुछ बातचीत
मिलिटरी ख़रीद और ख़र्च का चोखा धंधा
मिलिटरी ख़रीद और ख़र्च से किसको मुनाफ़ा होता है और मुनाफ़ा कमानेवाला इसे बरक़रार रखने के लिए क्या क़वायदें करता है.
‘Who is Bharat Mata?’
Prof Purushottam Agrawal has edited this valuable and important intervention.
जल संकट पर भयानक सरकारी लापरवाही
आज जब देश के बहुत बड़े हिस्से में सूखे की स्थिति है और मॉनसून बेहद कमज़ोर है, पानी की उपलब्धता और वितरण को लेकर चिंताएँ जतायी जा रही हैं. इस संकट में एक बार फिर से सालभर पहले आयी (14 जून, 2018) नीति आयोग की एक रिपोर्ट- कंपोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स- में दिए गए तथ्यों... Continue Reading →
तकता है तेरी सूरत हर एक तमाशाई…
यतींद्र मिश्र ने इस किताब के तमाम हिस्सेदारों के साथ मजमुआ की शक्ल में अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी का आलीशान मुजस्समा बनाया है.
बिहार: विकास दर में अव्वल, स्वास्थ्य में फिसड्डी
कथित रूप से आँकड़ों में सबसे ज़्यादा दर से विकासमान राज्य स्वास्थ्य के मामले में इतना लाचार और लापरवाह क्यों है?