1950 के दशक के पॉपुलर मेलोड्रामा और नेहरूवियन राजनीति

नेहरु के व्यक्तित्व और उनके विचारों को तथा हिंदुस्तानी सिनेमा में उसके चित्रण को ठीक से समझने के लिए विस्तार से लिखे और पढ़े जाने की ज़रूरत है।

पिया बिन नहिं आवत चैन

देवदास के सारे संस्करणों में कथानक लगभग एक जैसा है लेकिन निर्देशकों-अभिनेताओं की अपनी क्षमताओं ने हर फिल्म में कुछ जोड़ा है.

इंडियन रूम: सिनेमाई इतिहास की कुछ परतें

नज़मुल हसन की याद है किसी को? लखनऊ का वही नज़मुल, जो बॉम्बे टॉकीज़ के मालिक हिमांशु रॉय की नज़रों के सामने से उनकी पत्नी और मायानगरी की सबसे खूबसूरत नायिका देविका रानी को उड़ा ले गया था.

पत्रकार मार्खेस

मार्खेस का पत्रकारों को संदेश- ‘व्यापक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि’ का होना, अमानवीयकरण से बचना, ‘पढ़ना’ और तकनीक पर कम निर्भरता.

तेज़ाब हमले

होना तो यह चाहिए कि फ़िल्म छपाक के हवाले से ही सही, तेज़ाब से पीड़ित लड़कियों की व्यथा, इस अपराध को रोकने के उपायों, दोषियों को दंडित करने आदि पर चर्चा हो.

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