यह एक स्थापित तथ्य है कि उग्र-राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी राजनीति का सामना प्रगतिशील राजनीति के द्वारा ही किया जा सकता है.
ट्रंप के लिए नुक़सानदेह हो सकते हैं बोल्टन के दावे
ट्रंप प्रशासन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जॉन बोल्टन अपनी किताब में ख़तरनाक दावे कर रहे हैं.
वेब सीरिज़ में सेक्स और हिंसा
अवांछित, अपमानजनक और अश्लील सामग्री के लिए अकेले सीरिज़ निर्माताओं पर दोष नहीं मढ़ा जा सकता है.
1950 के दशक के पॉपुलर मेलोड्रामा और नेहरूवियन राजनीति
नेहरु के व्यक्तित्व और उनके विचारों को तथा हिंदुस्तानी सिनेमा में उसके चित्रण को ठीक से समझने के लिए विस्तार से लिखे और पढ़े जाने की ज़रूरत है।
भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब
सिनेमा हमारे सांस्कृतिक जीवन का एक अहम हिस्सा है, परंतु उसके इतिहास को लेकर हम कुछ कम गंभीर हैं.
The 1930s of Indian Cinema and Gender Questions
Few articles on cinema written by women and some reports and comments published in various periodicals in the 1930s give us a fair idea of the public sphere.
पिया बिन नहिं आवत चैन
देवदास के सारे संस्करणों में कथानक लगभग एक जैसा है लेकिन निर्देशकों-अभिनेताओं की अपनी क्षमताओं ने हर फिल्म में कुछ जोड़ा है.
Early Decades of Indian Cinema and National Leaders
By 1930, the national movement entered into a phase of intense activity, and from 1931, Indian films started to speak in various languages.
मंटो के नाम ख़त: वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है
अगर हमारे नेता तुम्हारी तस्वीर पर फूल-माला चढ़ाते तो क्या तुम्हें अच्छा लगता!
जनगणना में हिंदी व अन्य भाषाएं
जनगणना (2011) के अनुसार, सवा सौ करोड़ के भारत में 19,569 भाषाएँ और बोलियाँ मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं.
इंडियन रूम: सिनेमाई इतिहास की कुछ परतें
नज़मुल हसन की याद है किसी को? लखनऊ का वही नज़मुल, जो बॉम्बे टॉकीज़ के मालिक हिमांशु रॉय की नज़रों के सामने से उनकी पत्नी और मायानगरी की सबसे खूबसूरत नायिका देविका रानी को उड़ा ले गया था.
अब मज़दूर दिवस भयंकर विफलता और धोखेबाज़ी का शोक दिवस होना चाहिए
एक और बात से मुझे एलर्जी है- मज़दूरों से क्रांति या विरोध की उम्मीद करना. ऐसा कभी इतिहास में नहीं हुआ है.
नशे के हवाले से कुछ फूटकर टिप्पणियाँ
जिन बातों का सबसे ज़्यादा ख़्याल रखना चाहिए, वहीं बातें बहस में नहीं होतीं.
तो अजीत अंजुम को भी यूट्यूब पर आना पड़ा!
कहा जा रहा है कि यह उनकी मज़बूरी है क्योंकि उन्हें मेनस्ट्रीम मीडिया से किनारे कर दिया गया है.
बदल जायेंगे अमेरिका-चीन समीकरण
सभी देश, ख़ासकर पश्चिम के धनी देश, आत्ममंथन करें कि इतने विकास के बाद भी वे अपने लोगों को स्वास्थ्य और रोज़गार मुहैया क्यों नहीं करा पाए हैं.
पत्रकार मार्खेस
मार्खेस का पत्रकारों को संदेश- ‘व्यापक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि’ का होना, अमानवीयकरण से बचना, ‘पढ़ना’ और तकनीक पर कम निर्भरता.
अधकचरी समझ पर चमगादड़ जैसा लटका मीडिया
प्राचीन रोमन इतिहासकार टैसिटस ने लिखा है कि सत्य को जाँच और देरी से निर्धारित किया जाता है तथा झूठ को जल्दबाज़ी और अनिश्चितता से.
‘मेरे पास बस शहद का एक कटोरा है’
एक मार्क्सवादी मशीन या यंत्र-मानव नहीं, बल्कि हाड़-माँस, स्नायु, मस्तिष्क और ह्रदय से बना एक ऐतिहासिक, सामाजिक, और ठोस मनुष्य होता है.
तरस आता है उस देश पर : दो अनुदित कविताएं
तरस आता है उस देश पर : दो अनुदित कविताएं
तेज़ाब हमले
होना तो यह चाहिए कि फ़िल्म छपाक के हवाले से ही सही, तेज़ाब से पीड़ित लड़कियों की व्यथा, इस अपराध को रोकने के उपायों, दोषियों को दंडित करने आदि पर चर्चा हो.