युवाओं के पास दो ही विकल्प हैं. या तो वे कोई ‘बुलशिट जॉब’ पकड़ लें, जिससे किराया तो चुका सकें, पर भीतर घुटते रहें, या फिर आप लोगों की देखभाल करने या लोगों की ज़रूरत को पूरा करने का कोई काम करें, लेकिन ऐसे कामों में आपको इतनी कम कमाई होगी कि आप अपने परिवार को भी पाल-पोस नहीं पायेंगे.
‘नए युग में चीन के युवा’
चीन के स्टेट काउंसिल इन्फ़ॉर्मेशन ऑफ़िस ने चीनी युवाओं पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया है.
क्रिप्टो कथा: स्पष्ट नियमन न होने से बढ़ती अड़चनें
पिछले साल ब्रोकर डिस्कवरी फ़र्म ब्रोकरचूज़र ने बताया था कि क्रिप्टो के भारतीय निवेशकों की संख्या 10.07 करोड़ है. इस हिसाब से संख्या के मामले में भारत दुनिया में पहले पायदान पर है.
शादी की आयु बढ़ाना बेमतलब पहल
दुनिया में सबसे ज़्यादा बालिका वधुएँ भारत में हैं और वैश्विक संख्या में उनका हिस्सा लगभग एक-तिहाई है. देश में 18 साल से कम आयु की ब्याहताओं की तादाद कम-से-कम 15 लाख है तथा 15 से 19 साल की क़रीब 16 फ़ीसदी लड़कियों की शादी हो चुकी है.
कृषि कानून समर्थक पत्रकारों की बेचैनी
अब जब क़ानून रद्दी में फेंके जा रहे हैं, तो सरकार के समर्थक पत्रकारों की प्रतिक्रिया देखना दिलचस्प है.
A Wishful Thinking Or A Misplaced Optimism!
It is high time for us to realise and to accept that there is no possibility of any ray of redress in the current economic and fiscal dungeon helmed by a political realm infected, for too long, at least for three decades, with two viruses- the Neo-con and the Neo-lib.
आर्थिक महाशक्तियां चिल्लर नहीं रखतीं…
चवन्नी का जाना बचे खुचे का जाना है. हम आज कुछ और गरीब हुए हैं. बस एक चवन्नी छाप उम्मीद है, सो है…
जेरूसलम में जीसस
अब्राहम की परंपरा से निकले तीन धर्मों- यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम- के प्रवर्तकों में अकेले जीसस ही हैं, जो जेरूसलम पहुँचे और वहाँ उन्होंने धर्म और ईश्वर के बारे में बयान दिया.
‘कैंसिल कल्चर’ ‘ऐक्शन’ का विकल्प नहीं है
'कैंसिल कल्चर’ को लेकर इतनी चिंता क्यों होनी चाहिए?
‘द प्रोटोकॉल्स ऑफ़ एल्डर्स ऑफ़ ज़ायन’ किताब की दिलचस्प कथा
बीसवीं सदी के बिल्कुल शुरू में यहूदियों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए यह फ़र्ज़ी किताब छापी गयी. वर्ष 1901-03 के बीच रूस में तैयार यह किताब बहुत जल्दी ओस्मानिया साम्राज्य (तुर्की) और यूरोप पहुँच गयी.
निजी क्षेत्र में आरक्षण समय की ज़रूरत है
निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की वैधता पर विचार करने से पहले यह उल्लेख कर देना ज़रूरी है कि आरक्षण के मसले पर मेरिट, सामान्य श्रेणी या अगड़ों के साथ अन्याय तथा निजी क्षेत्र की स्वायत्तता में बेमानी दख़ल जैसे तर्कों पर फ़ालतू चर्चा का अब कोई मतलब नहीं है.
चेहराविहीन दुनिया में कैसे रहा जायेगा!
आगम्बेन ने पूछा है- पॉलिटिक्स की जगह इकोनॉमिक्स को लानेवाले इस सिस्टम को क्या मानवीय कहा जा सकता है और क्या चेहरे, दोस्ती, प्यार जैसे संबंधों को खोने की भरपाई एक एब्सट्रैक्ट और काल्पनिक स्वास्थ्य सुरक्षा से हो सकती है?
रॉबर्ट फ़िस्क: आंखो देखी लिखने वाला पत्रकार
बीते पांच दशकों के अपने सुदीर्घ पेशेवर जीवन में उन्होंने संभवत: हर उस बड़ी घटना को नज़दीक से देखा, जिसने हमारी आज की दुनिया को बनाने-बिगाड़ने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी.
नशे के बारे में
शराबबंदी की सनक का एक और पहलू है पारंपरिक मादक पेय पदार्थों पर रोक.
नाराज़गी, नफ़रत और नकार पर टिका है सोशल मीडिया का कारोबार
सोशल मीडिया नाराज़गी से चलता है और आप चाहे जो कुछ कर लें, आप अपने बच्चों को इससे बचा नहीं सकते हैं.
शोले के बहाने
जब 15 अगस्त को शोले रिलीज़ हुई, दीवार मेगा हिट हो चुकी थी और थियेटरों में अब भी जय संतोषी माँ का जलवानुमा थी.
ईश्वर और उनके पैगंबरों को लठैतों की जरूरत नहीं!
सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि ब्लासफेमी का कोई धार्मिक आधार नहीं है। किसी भी धर्म के मूल ग्रंथों में इस ‘अपराध’ का उल्लेख तक नहीं है।
स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर लीथियम की लूट
इस सदी का इतिहास बहुत हद तक व्हाइट गोल्ड यानी लीथियम पर निर्भर करेगा.
जनसंख्या नियंत्रण की पुरानी बकवास
बर्थ कंट्रोल की चिंता एक बहुत पुराना शग़ल है.
On Yash Chopra / यश चोपड़ा के बारे में
यश चोपड़ा के बारे में एक टिप्पणी हिंदी और English में पढ़ने के लिए इन लिंक को चटकाएँ.