What happens when a mathematician pens poems?
I In Togetherness: A Quest Within and Outside
The duo- Mee & Jey- has transformed that series of weekly posts of being together and enacting playfully in an immense collection and exhibition called I In Togetherness. I consider this series- visually stunning,
तपिशे-शौक़ और ख़ुलूस का क़िस्सा
‘उसे सिर्फ़ इतना पता है कि यहाँ समानता नहीं है और वह होनी चाहिए. और इतनी आसान-सी चीज़ का होना क्यों इतना मुश्किल है…!’
A Soofi in the Brothel
How long Sushmas of the GB Road will get customers? Will this place will also be a past like Chawri Bazar soon?
Delhi Crime: ऐसी अपराध कथा जिसमें अपराधियों के लिए जगह ही नहीं है!
पॉपुलर कल्चर और पब्लिक स्फेयर में अपराध कथाओं की एक ख़ास जगह है. इसमें पाठक या दर्शक सिर्फ़ भावनात्मक तौर पर ही प्रतिक्रिया नहीं देता है, बल्कि वह एक गवाह, खोजी और जज की भूमिका में भी होता है.
वर्तमान के विद्रूप का चित्रण ‘गुलाबो सिताबो’
अनुराग कश्यप की हालिया फ़िल्म ‘चोक्ड’ के साथ ‘गुलाबो सिताबो’ को रखकर देखें, तो यही लगता है कि हमारे दौर की विडंबनाओं को कथा में कहना अब लगातार मुश्किल होता जा रहा है.
‘जितना अपनी पैंट खोलते हो, उतना ही दिमाग भी खोलो’!
सेक्सुअलिटी की इस तरह की सतही समझ से दमित सेक्सुअलिटी को कुछ होना होता, तो दादा कोंड़के से लेकर भोजपुरी सिनेमा के भौंड़ेपन ने अब तक क्रांति कर दी होती!
‘नया दौर’ और 1957 का साल
'नया दौर' के तेवर और उसकी बहुआयामी राजनीति उन समझदारियों को ख़ारिज़ करते हैं, जिनका मानना है कि मेलोड्रामाई पॉपुलर सिनेमा अराजनीतिक होता है और पारंपरिक मूल्यों को अपने स्टिरीयो-टाइप फॉर्मूले में ढोता है.
टीका परंपरा में शानदार योगदान
पौराणिक कथाओं के जाने-माने व्याख्याता और टिप्पणीकार डॉ देवदत्त पटनायक ने तुलसीदास की रचना 'हनुमान चालीसा' की टीका लिखी है.
बिदेसिया हुए पुरखों की कथा
अपनी परनानी सुजरिया का पता खोजती गायत्रा इस यात्रा में हज़ारों सुजरियों से मिलती है...
पितृसत्ता पर जोरदार ‘थप्पड़’
'थप्पड़' पितृसत्ता पर थप्पड़ है, पर हिंसक तेवर के साथ नहीं, हमारी जड़ीभूत संवेदना व चेतना को तर्कों व भावनाओं से झिंझोड़ती हुई.
‘जामताड़ा’ का ऑब्वियस
'जामताड़ा' क्या सिर्फ़ एक क़स्बे की कहानी है, जो डिजिटल इंडिया और कैशलेस इकोनॉमी को पलीता लगाता है...
रचनाकार नरेंद्र मोदी: एक आकलन
साहित्यकार के रूप में नरेंद्र मोदी के आकलन की एक कोशिश
नेक्रोफिलिया है ‘द डर्टी पिक्चर’
अब तक पुरुष पुरुष होने की ग्रंथि से पीड़ित था, अब वह नेक्रोफिलिया का रोगी है. चिंता तब बढ़ जाती है जब यह रोग सामूहिक हो जाता है.
Some Sufi Tales and A Desperate Housewife
Everything seems so alright. And, then a manuscript enters her life.
‘स्वदेश तुम कहाँ गुम हो गए…’
इस संग्रह को इसलिए भी पढ़ा जाना चाहिए ताकि हमें अपने वर्तमान के उन अँधेरे कोनों, असुरक्षा के भय और तमाम आशंकाओं का संज्ञान हो सके, जिन्हें हम लगातार देखते-बूझते भी नजरअंदाज़ करते रहते हैं.
जब पूंजी कांपती है, हम सब कांपते हैं
साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की चिंताजनक छाया एक बार फिर मंडरा रही है। कार्ल मार्क्स का कहना था कि पैसा इतिहास की धारा तय करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है और इस पैसे की धारा तय करनेवाली बैंकिंग व्यवस्था को थॉमस जेफरसन आजादी के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे। आर्थिक मंदी... Continue Reading →
Ravish Kumar on Today’s India
What’s happening cannot be understood without understanding the contours of ultra-nationalism.
Sudhanshu Firdaus : The Young Bard of Trauma
What happens when a mathematician pens poems?
‘Who is Bharat Mata?’
Prof Purushottam Agrawal has edited this valuable and important intervention.