निज़ार तौफ़ीक़ क़ब्बानी (मार्च 21, 1923 – अप्रैल 30, 1998) एक सीरियाई कूटनीतिक, कवि और प्रकाशक थे. वे समकालीन अरबी कविता के सबसे सम्मानित कवियों में शुमार किए जाते हैं. उनकी कुछ कविताओं के अंग्रेज़ी अनुवाद को मैंने हिंदी में पेश करने की कोशिश की है. पढ़ा जाए…
1
सब्ज़ ट्यूनीशिया, तुम तक आया हूँ हबीब की तरह
अपने ललाट पर लिये इक गुलाब और इक किताब
क्योंकि मुझ दमिश्की का पेशा मुहब्बत है…
2
और दमिश्क देता है अरबियत को उसका रूप
और उसकी धरती पर ज़माने लेते हैं आकार
3
यदि मेरी रक्षा का वादा किया जाये,
यदि मैं सुल्तान से मिल सकूं

(यह तस्वीर उनके भाई सबाह क़ब्बानी ने दबाग़ी, बेरूत, लेबनान में 1969 में ली थी. मेरे एक ब्लॉग में लगी यह तस्वीर देखकर यह जानकारी उनकी भतीजी राना क़ब्बानी ने मुझे दी थी.)
मैं उनसे कहूँगा: ओ महामहिम सुल्तान
मेरे वस्त्र तुम्हारे खूंखार कुत्तों ने फाड़े हैं,
तुम्हारे जासूस लगातार मेरा पीछा करते हैं.
उनकी आँखें
उनकी नाक
उनके पैर मेरा पीछा करते हैं
नियति की तरह, भाग्य की तरह
वे पूछताछ करते हैं मेरी पत्नी से
और लिखते हैं नाम मेरे तमाम दोस्तों के.
ओ सुल्तान!
क्योंकि मैंने की गुस्ताख़ी तुम्हारी बहरी दीवारों तक पहुँचने की,
क्योंकि मैंने कोशिश की अपनी उदासी और पीड़ा बयान करने की,
मुझे पीटा गया मेरे ही जूतों से.
ओ मेरे महामहिम सुल्तान!
तुमने दो बार हारा वह युद्ध *
क्योंकि आधे हमारे लोगों के पास जुबान नहीं है.
(*1948 और 1967 के अरब-इज़रायल युद्ध जिनमें अरब की संयुक्त सेना की हार हुई थी)
4
अरब के बच्चों,
भविष्य के मासूम कवच,
तुम्हें तोड़ना है हमारी जंजीरें,
मारना है हमारे मस्तिष्क में जमा अफीम को,
मारना है हमारे भ्रम को.
अरब के बच्चों,
हमारी दमघोंटू पीढ़ी के बारे में मत पढ़ो,
हम हताशा में क़ैद हैं.
हम तरबूजे की छाल की तरह बेकार हैं.
हमारे बारे में मत पढ़ो,
हमारा अनुसरण मत करो,
हमें स्वीकार मत करो,
हमारे विचारों को स्वीकार मत करो,
हम धूर्तों और चालबाजों के देश हैं.
अरब के बच्चों,
वसंत की फुहार,
भविष्य के मासूम कवच,
तुम वह पीढ़ी हो जो
हार को कामयाबी में बदलेगी…
5
भाषा
प्रेम में पड़ा पुरुष
कैसे कर सकता है पुराने शब्दों का प्रयोग?
प्रेमी की इच्छा करती स्त्री को
क्या भाषा और व्याकरण के विद्वानों की शरण लेनी चाहिए?
कुछ नहीं कहा मैंने
उस स्त्री से जिसे मैंने चाहा
जमा किया
प्रेम के सभी विशेषणों को एक संदूक में
और भाग गया सभी भाषाओं से
6
दुखी मेरे देश,
एक पल में
बदल दिया तुमने
प्रेम की कवितायें लिखनेवाले
मुझ कवि को
छूरी से लिखने वाले कवि में…
7
प्यार की तुलना
मैं रक़ीबों की तरह नहीं हूँ, अज़ीज़ा
अगर कोई तुम्हें बादल देता है
तो मैं बारिश दूँगा
अगर वह चराग़ देता है
तो मैं तुम्हें चाँद दूँगा
अगर देता है वह तुम्हें टहनियाँ
मैं तुम्हें दूँगा दरख़्त
और अगर देता है रक़ीब तुम्हें जज़ीरा
मैं दूँगा एक सफ़र
8
मैंने हवा से कहा
कि वह कंघी फेर दे
तुम्हारे घने काले बालों में
उसने मना कर दिया
और कहा:
वक़्त बहुत कम है
और बहुत…
बहुत लंबे हैं तुम्हारे बाल…
9
ओ जेरूसलम, नबियों की ख़ूशबू से पूर
जन्नत और ज़मीन के दरम्यान कमतरीन दूरी…
नज़रें झुकाये ख़ूबसूरत बच्चा जिसकी उँगलियाँ जली हुई हैं…
ओ जेरूसलम, दुख के शहर
तुम्हारी आँखों में रूका हुआ इक आँसू…
कौन धोयेगा ख़ून से तर तुम्हारी दीवारों को?
ओ जेरूसलम, मेरे अज़ीज़
नींबू के पेड़ कल फलेंगे, जैतून के दरख़्त हुलसेंगे, तुम्हारे आँखें नाचेंगी;
और कबूतर फिर लौट आयेंगे तुम्हारी पवित्र मीनारों पर…
10
हर बार जब तुम्हें चूमता हूँ
लंबी जुदाई के बाद
महसूस होता है
मैं डाल रहा हूँ जल्दी-जल्दी एक प्रेम पत्र
लाल लेटर बॉक्स में.
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