साल 2018 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप की बात को नकारते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि इतने रूसी हैं या फिर रूसी नागरिकता के अल्पसंख्यक- यूक्रेनी, यहूदी, तातार (मुस्लिमों के लिए आम तौर पर प्रचलित संज्ञा) हैं, रूसी मूल के अमेरिकी हैं- इनमें से कोई भी हो सकता है. उन्होंने यह भी कहा था कि यह भी संभव है कि अमेरिकियों ने पैसे के बदले काम कराया हो. पुतिन वास्तव में आरोप को ख़ारिज़ कर रहे थे. पर, अगर बयान में यहूदी शब्द आ जाये, तो कुछ प्रतिक्रिया तो होनी थी. इज़रायली नेतृत्व चूँकि ठीक से पुतिन की बात को समझ रहा था, इसलिए चुप रहा. लेकिन, जेरूसलम में कुछ यहूदी संगठनों ने इस पर आपत्ति जतायी थी. एक ने तो इस बयान की तुलना ‘द प्रोटोकॉल्स ऑफ़ एल्डर्स ऑफ़ ज़ायन’ से कर दी थी. इस किताब का मामला बेहद दिलचस्प है.

रूस में ज़ारशाही के दौर में यहूदियों का भयानक क़त्लेआम हुआ था और बड़ी तादाद में लोग देश छोड़ गये थे. बीसवीं सदी के बिल्कुल शुरू में यहूदियों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए यह फ़र्ज़ी किताब छापी गयी. इसमें यह बताया गया है कि उन्नीसवीं सदी के आख़िरी सालों में यहूदी समुदाय के बड़े-बुज़ुर्गों की एक बैठक हुई थी, जिसमें यह तय किया गया था कि पूरी दुनिया पर- हर क्षेत्र में- यहूदियों का वर्चस्व कैसे स्थापित किया जाये. वर्ष 1901-03 के बीच रूस में तैयार यह किताब बहुत जल्दी ओस्मानिया साम्राज्य (तुर्की) और यूरोप पहुँच गयी.
सबसे पहले सेंट पीटर्सबर्ग के एक अख़बार ने इसका संक्षिप्त रूप 1903 में छापा था. माना जाता है कि पेरिस में कार्यरत रूसी ख़ुफ़िया विभाग के एक अधिकारी ने इसे तैयार किया था. इस किताब ने दो उद्देश्य पूरे किये. एक तो यहूदियों के ख़िलाफ़ माहौल बना, और दूसरे इससे कम्यूनिस्ट विरोधी प्रचार को बल मिला क्योंकि विभिन्न देशों में सोशलिस्ट विचारों और राजनीति की अगुवाई यहूदी कर रहे थे. इस किताब के प्रोपेगैंडिस्ट महत्व को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि एक बहुत बड़े धनकुबेर धंधेबाज़ हेनरी फ़ोर्ड ने 1920 से 1927 के बीच इस किताब की लाखों प्रतियाँ अमेरिका में बँटवाई और अमेरिकियों को डराने की कोशिश की कि कम्यूनिस्ट व्यापक षड्यंत्र रच चुके हैं. इस धनपशु ने अपने अख़बार ‘द डियरबॉर्न इंडिपेंडेंट’ में इस किताब का अनुवाद सिलसिलेवार छापा और संबंधित लेख प्रकाशित किये.
साल 1920-21 में इस किताब के फ़र्ज़ीवाड़े का ख़ुलासा करने के बाद भी यहूदियों के ख़िलाफ़ दुनियाभर में इस किताब को ले जाया गया. वर्ष 1917 की रूसी क्रांति के झटके ने भी इस फ़र्ज़ीवाड़े के पीछे के डर और द्वेष को मज़बूत किया. आज भी मुस्लिम और ईसाई समाजों में कुछ लोग यहूदियों के ख़िलाफ़ ज़हर बोने में इस किताब का सहारा लेते हैं. ख़ैर, रूस में ज़ारशाही के दमन का मुक़ाबला करने के लिए ट्रॉटस्की (जो ख़ुद भी यहूदी परिवार में पैदा हुए थे और बहुत से लोग मानते हैं कि अगर वे यहूदी मूल के नहीं होते, तो सोवियत संघ के पहले प्रमुख बनते) ने कुछ यहूदी युवाओं को हथियार भी दिया था. उसी प्रतिरोध का एक धड़ा जेरूसलम आकर पहली बार यहूदियों की हथियारबंद टुकड़ी तैयार करता है, जिसके नेतृत्व में लड़ कर यहूदी दो हज़ार साल बाद अपना देश बनाते हैं. आह! जेरूसलम! जेरूसलम दुनिया की सब कहानियों की जड़ है, वह ऐसा सोता है जिससे आख्यान निकलते ही जाते हैं, कथाओं की निरंतर बरसात का नाम है जेरूसलम…
Leave a Reply