स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर लीथियम की लूट

डिजिटल तकनीक और इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए कई अन्य खनिज पदार्थों के साथ लीथियम की वैश्विक लूट जारी है. चूँकि यह बैटरी में इस्तेमाल होता है, सो नयी ऊर्जा ज़रूरतों में इसकी बहुत ज़्यादा अहमियत है. इसका एक अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2015 की तुलना में 2020 में लीथियम आयन बैटरियों की माँग तीन गुना अधिक होकर 180 गीगावाट घंटे के स्तर पर है. इस लेख में लीथियम से जुड़े कुछ पहलुओं पर चर्चा की गयी है.

नवंबर, 2019 में बोलिविया में राष्ट्रपति इवो मोरालेस को अपदस्थ कर दिया गया था और उन्हें देश छोड़ना पड़ा था. इस तख़्तापलट में न केवल वहाँ की सेना शामिल थी, बल्कि उसे देश के दक्षिणपंथी तत्वों और अमेरिका का पूरा समर्थन था. अमेरिका के कथित उदारवादियों ने भी इसमें योगदान दिया था. पश्चिमी मीडिया ने एक फ़र्ज़ी रिपोर्ट के आधार पर यह शोर मचाया था कि अक्टूबर में मोरालेस की जीत गड़बड़ी से हासिल की गयी थी. उनका नया कार्यकाल इस साल जनवरी से शुरू होना था, यानी वे कम-से-कम दिसंबर तक वैध रूप से राष्ट्रपति पद पर रहने के अधिकारी थे. इस साल जून में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने स्वीकार किया कि उसने जिस रिपोर्ट के आधार पर मोरालेस पर चुनावी गड़बड़ी का आरोप लगाया था, वह रिपोर्ट ही गड़बड़ थी. ख़ैर, पश्चिमी राजनीति में दक्षिणपंथियों और उदारवादियों का ऐसा गठजोड़ पहली बार नहीं हुआ था. पहले इस बारे में मैंने लिखा था और रेखांकित किया था कि मोरालेस के तख़्तापलट को अन्य अख़बारों के साथ ‘द इकोनॉमिस्ट’, ‘द वाशिंगटन पोस्ट’, ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘मदर जोंस’, ‘द अटलांटिक’, ‘बीबीसी’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने सिलेब्रेट किया था.  

अब उद्योगपति एलन मस्क ने ट्वीटर पर कह दिया है कि वे जहाँ चाहेंगे, तख़्तापलट करेंगे. जो करना हो, कर लो. हुआ यूँ कि हाल ही में शेयर बाज़ार में दो अरब डॉलर से अधिक कमाने वाले मस्क ने ट्वीट किया था कि अमेरिकी जनता को इस कोरोना काल में और वित्तीय राहत देना जनता के हित में नहीं है. इसके जवाब में किसी ने कहा कि जनता के हित में तो वह तख़्तापलट नहीं था, जिसे अमेरिकी सरकार ने कराया था ताकि आप वहाँ से लीथियम निकाल सकें. इसी पर मस्क ने वह जवाब दिया था. इवो मोरालेस शुरू से ही नवंबर के तख़्तापलट को ‘लीथियम तख़्तापलट’ कहते रहे हैं. इस बारे में विस्तार से लिखते हुए लेखक-इतिहासकार विजय प्रसाद और बोलिविया के संगीतकार-टिप्पणीकार अलेजांद्रा बेजारानो ने बताया है कि अपने 14 सालों के शासन में मोरालेस ने बोलिविया की संपदा को जनता के हक़ में इस्तेमाल करने के लिए बड़ा संघर्ष किया है.

साल 2015 से अब तक लीथियम आयन बैटरियों की माँग तीन गुनी बढ़ चुकी है. इस साल इसके 180 गीगावाट घंटे होने का अनुमान है. यह आकलन कोरोना संकट से पहले का है, सो माँग आकलन से भी कहीं अधिक हो सकती है. हमारे देश में भी लीथियम बैटरियों के उत्पादन के चार कारख़ानों में चार अरब डॉलर का निवेश हुआ है. आकलनों की मानें, तो 2030 तक लीथियम की माँग 2.2 मिलियन टन तक जा सकती है, जबकि आपूर्ति केवल 1.67 मिलियन टन ही हो सकेगी. इस वजह से एक तरफ बेतहाशा खुदाई का सिलसिला चल पड़ा है, तो दूसरी तरफ़ इसके विकल्पों, जैसे- ज़िंक, पर भी ध्यान दिया जा रहा है. इस संबंध में उमर अली का यह लेख देखा जा सकता है.

आम चर्चा में भू-राजनीतिक हलचलों को राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से देखने का चलन है. उनके आर्थिक पक्ष अक्सर पीछे रह जाते हैं. उदाहरण के लिए अफ़ग़ानिस्तान को लें. वहाँ की अस्थिरता, गृहयुद्ध और युद्ध को आतंक, क़बीलाई संस्कृति और महाशक्तियों की तनातनी के सरलीकरण से समझने की कोशिश होती है, लेकिन खनिज संपदा या अफ़ीम की खेती आदि के समीकरण को समझे बिना मसले को ठीक से नहीं जाना जा सकता है. वहाँ कई ट्रिलियन डॉलर की खनिज संपदा है, जिसमें तेल, प्राकृतिक गैस, बहुत से क़ीमती खनिज व पत्थर, सोना, लोहा, ताँबा और विरल खनिज (रेयर अर्थ मटेरियल) हैं. लीथियम भी इनमें से एक है. साल 2010 में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट में अमेरिकी सेना के दस्तावेज़ों के हवाले से बताया गया था कि अफ़ग़ानिस्तान ‘लीथियम का सऊदी अरब’ होने के कगार पर है. अस्थिरता की वजह से हज़ारों खदानों पर सरकार का नियंत्रण नहीं है और हेरोइन के बाद तालिबान के लिए खनिज पदार्थों का दोहन कमाई का बड़ा माध्यम है.  

बोलिविया, अर्जेंटीना और चिली, जिन्हें लीथियम त्रिकोण भी कहा जाता है, में लीथियम की खुदाई और ताबड़तोड़ दोहन के स्थानीय समुदायों पर असर के बारे में ‘द वाशिंग्टन पोस्ट’ ने चार साल पहले लंबी रिपोर्ट दी थी, जिसे पढ़ा जाना चाहिए. इस रिपोर्ट में यह भी इंगित किया है कि एलन मस्क की कंपनी टेस्ला लीथियम की सबसे बड़े ख़रीदारों में है. इस साल जून में लातीनी अमेरिका में लीथियम की खुदाई पर एक शोधपरक लेख ‘लेक्सोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है. इसमें लीथियम के बारे में जानकारी के साथ उसकी खुदाई में पानी के बेतहाशा इस्तेमाल और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों पर भी चर्चा है.  

ऊर्जा के स्रोतों के खनन और कारोबार ने दुनिया के इतिहास को बदलते रहने में प्रमुख भूमिका निभायी है. बीसवीं सदी का इतिहास ब्लैक डायमंड यानी कोयला और ब्लैक गोल्ड यानी पेट्रोलियम का रहा था, तो इस सदी का इतिहास बहुत हद तक व्हाइट गोल्ड यानी लीथियम पर निर्भर करेगा. यह देखना दिलचस्प है कि पीरियोडिक टेबल का पहला धातु क्या रंग जमाता है. जनवरी, 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दौरे के समय बोलिविया के साथ लीथियम के खनन और आयात को लेकर समझौते हुए थे. अब मोरालेस नहीं हैं, तो उन समझौतों को लेकर क्या होता है, यह भी जानना दिलचस्प होगा. भारत और चीन के बीच तनातनी के माहौल में एक पहलू यह भी है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत के कम होते असर का क्या असर वहाँ से लीथियम लाने के मामले पर होगा. क्या वह अब बहुत ज़्यादा चीन के हाथों में चला जाएगा? कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि जैसे अफ़ीम व हेरोइन तस्करी से चीन और भारत पहुँचाया जाता है, वैसे ही शायद लीथियम भी आएगा. क्या पता, आ भी रहा हो!

(‘जनपथ’ पर ‘डिक्टा फ़िक्टा’ कॉलम में प्रकाशित)

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