तीन अनिवार्य तत्वों- आस्था, आध्यात्मिकता और आख्यान- से धर्म साकार होता है. इन्हीं तत्वों से कर्मकांडों और दार्शनिकता को भी आधार मिलता है. इसी कारण से धर्म और उससे संबद्ध विषयों की व्याख्या और उन पर बहसों का सिलसिला अनवरत जारी रहता है. सभी सभ्यताओं में धार्मिक आख्यानों और कथाओं की प्रधानता है. यह भी दिलचस्प है कि उन कथाओं में विविधता और विरोधाभासों की उपस्थिति भी बहुत है. हमारे यहां धार्मिक साहित्य पर टीकाओं की समृद्ध परंपरा रही है. वैविध्य और बहुआयामीय आस्था को इन टीकाओं ने भी खूब सींचा है. इसी कड़ी में पौराणिक कथाओं के जाने-माने व्याख्याता और टिप्पणीकार डॉ देवदत्त पटनायक ने तुलसीदास की रचना ‘हनुमान चालीसा‘ की टीका लिखी है. वे बरसों से हिंदू धर्म के साहित्य, कथा-परंपरा और अन्य सभ्यताओं से उसके साम्य या विभेद पर लिखते-बोलते रहे हैं. बेहद सरस, सरल और रूचिकर अंदाज में डॉ पटनायक ने धार्मिक आख्यानों को लोगों तक पहुंचाया है.
एक ऐसे समय में जहां धर्म, धार्मिकता और धार्मिक चेतना का इस्तेमाल हिंसा, घृणा और भेदभाव के लिए किया जा रहा हो तथा ऐसा कर राजनीति की जमीन सींची जा रही हो, धर्म को उसके लोकप्रिय स्वरूप में ज्ञान और संवेदना के साथ प्रस्तुत करना बहुत अहम कार्य है जिसे पटनायक बखूबी करते आ रहे हैं. धर्म जहां सामुदायिकता और सामूहिकता का एक आधार बनता है, वहीं वह एक स्तर पर नितांत व्यक्तिगत और आत्मिक भी होता है. तुलसीदास की हनुमान चालीसा पर पटनायक की टीका ‘मेरी हनुमान चालीसा‘ सामुदायिकता और आत्मिक के बीच संचार करती है. सामुदायिकता इसलिए कि यह उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय और पवित्र धार्मिक साहित्य की व्याख्या करते हुए पौराणिक कथाओं और विविध मान्यताओं के समुद्र में छलांग लगाती हैं तथा व्यक्तिगत इसलिए कि इसे पढ़ते हुए हनुमान की एक बहुमुखी छवि दिलो-दिमाग में बनती जाती है. हनुमान चालीसा समेत हिंदू धर्म के लोकप्रिय साहित्य-संसार के साथ एक दिलचस्प बात यह है कि उन्हें आस्थावान हिंदू श्रद्धा से खून पढ़ते-गुनते हैं, पर उन्हें ऐसा करने के लिए न तो कोई धार्मिक आदेश है और न ही किसी साधु या गुरु का निर्देश. यह भी उल्लेखनीय है कि यह साहित्य स्वयं में ही आस्था और पूजा का एक विषय बन गया है.
अवधी में लिखे 43 पदों की यह रचना देवदत पटनायक की टीका में विस्तार पाती है और कथा-दर-कथा की परतों से हनुमान का विराट स्वरूप हमारे सामने साकार होता जाता है. तुलसीदास न सिर्फ एक अनन्य भक्त हैं, बल्कि उनका कवित्व भी अनुपम है. यह निविवाद तथ्य है कि भारतीय इतिहास के वे सबसे आदरणीय और लोकप्रिय साहित्यकार हैं. पटनायक की इस टीका को अंग्रेजी से हिंदी में भरत तिवारी ने अनुदित किया है जो स्वयं ही साहित्य और कला के रसिक हैं. अनुवाद में पटनायक की सहज-सरल भाषा-प्रवाह को बरकरार रखा गया है, बल्कि उसे हिंदी शब्दों के विवेकपूर्ण चयन और सरस वाक्य-विन्यास से रवानी भी दी गयी है. देवदत पटनायक ने किताब में हनुमान के अनेक रेखा-चित्र बनाये हैं जो पाठ के रस को दोबाला कर देते हैं. रुपा प्रकाशन से छपी यह किताब सुधी पाठकों के लिए अनुपम उपहार है और राजनीति से संक्रमित होती जाती धार्मिकता को उसके आध्यात्मिक आनंदलोक में प्रतिष्ठित करती है. ‘मेरी हनुमान चालीसा‘ भक्ति साहित्य के अध्येताओं के लिए भी उपयोगी है.
(प्रभात खबर में 22 अप्रैल, 2018 को प्रकाशित)
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