बोरिस जॉनसन की जीत: उदारवादी लोकतंत्र को एक और झटका

ब्रिटेन के ऐतिहासिक चुनाव का सार यह है कि कंज़रवेटिव पार्टी ने मार्गरेट थैचर के बाद से सबसे बड़ी जीत हासिल की है और जेरेमी कॉर्बिन की अगुवाई में लेबर पार्टी को 1935 के बाद सबसे बड़ी हार मिली है. जीत-हार का यह हिसाब ब्रिटेन के इंग्लैंड वाले हिस्से में तय हुआ है क्योंकि इस द्वीपीय लोकतांत्रिक राजशाही के अन्य भागों में नतीज़े कमोबेश पिछले दो चुनाव की तरह ही रहे हैं. इसीलिए यह कहा जा रहा है कि बोरिस जॉनसन की बड़ी जीत का आधार ब्रेक्ज़िट है. उल्लेखनीय है कि जून, 2016 के जनमत संग्रह में लंदन को छोड़कर बाक़ी इंग्लैंड में बहुमत ने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने की पैरोकारी की थी. ऐसा लगता है कि इस मसले पर जेरेमी कॉर्बिन की लेबर पार्टी के रवैये से मतदाताओं में असंतोष था, जिस वजह से अच्छी तादाद में लेबर पार्टी के मतदाताओं ने कंज़रवेटिव पार्टी को वोट डाला है. दशकों से जिन सीटों पर लेबर पार्टी का दख़ल रहा है और जिन्हें बहुत सुरक्षित सीटों के रूप में देखा जाता था, वैसी कई सीटों पर उसे या तो हार का मुँह देखना पड़ा है या फिर जीत का अंतर बहुत कम हो गया है. यूरोपीय संघ की नीतियों व तौर-तरीक़ों पर कॉर्बिन के आलोचनात्मक रूख से लेकर ब्रेक्ज़िट पर दुबारा जनमत-संग्रह कराने पर सहमति तक लेबर पार्टी के बदलते रवैये से ब्रेक्ज़िट समर्थकों व विरोधियों में ग़लत संदेश गया.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एवं ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन जी7 बैठक (अगस्त 26, 2019, फ़्रांस) में. (फ़ोटो: शीलाह क्रेगहेड, व्हाइट हाउस फ़ोटोग्राफ़र)

कॉर्बिन की नीतियाँ और उनकी छवि चाहे जितनी अच्छी हो, इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने कंज़रवेटिव पार्टी को सत्ता से हटाने की जगह यूरोपीय संघ से कोई ठोस क़रार के बाद ही ब्रेक्ज़िट पर अमल करने को अपने एजेंडे में पहले रखा. पार्टी के भीतर के विरोधियों तथा बीबीसी व द गार्डियन समेत मीडिया ने लेबर नेता पर सही-ग़लत आधारों पर निशाना साधने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा. बाक़ी कसर सैनिक व सिविल सेवा के अधिकारियों के गैर-ज़िम्मेदाराना बयानों, कंज़रवेटिव पार्टी को मिले ख़रबपतियों के चंदे और अनेक विदेशी नेताओं के बयानों ने पूरा कर दिया- इस चुनाव में ब्रिटेन के 151 ख़रबपतियों में से एक-तिहाई ने कंज़रवेटिव पार्टी को चंदा दिया था और अमेरिकी विदेश सचिव माइक पोम्पियो ने कहा था कि अमेरिका कॉर्बिन की जीत को रोकने की कोशिश में लगा हुआ है. कंज़रवेटिव पार्टी मशीनरी के साथ हिंदुत्व-समर्थक और इज़रायली दक्षिणपंथी समूहों ने भी लेबर पार्टी के ख़िलाफ़ झूठ व अफ़वाह पर आधारित अभियान चलाया.

बहरहाल, इस हार के बाद जेरेमी कॉर्बिन का लेबर नेता बने रहना बहुत मुश्किल है और उन्हें इस हार के लिए दोषी भी ठहराया जाएगा, जबकि असलियत यह है कि उनकी अगुवाई में पार्टी ने बड़ी जीतें भी हासिल की है और संगठन का दायरा भी बहुत बढ़ा दिया है. आज लेबर पार्टी पश्चिमी यूरोप की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. कॉर्बिन के हटने से भी बड़ा सवाल यह यह है कि ब्रिटिश राजनीति की उदारवादी, समाजवादी और बहुलवादी परंपरा का भविष्य क्या होगा क्योंकि बोरिस जॉनसन की नयी सरकार देश के इतिहास की सबसे अधिक दक्षिणपंथी रूझान की सरकार हो सकती है, जो सामाजिक माहौल ख़राब करने के साथ कल्याणकारी कार्यक्रमों को भी रद्द करने की कोशिश करेगी. ब्रेक्ज़िट मसले से इंग्लैंड और वेल्स में पैदा हुई खाई को पाटना तो मुश्किल होगा ही, ब्रिटेन के अन्य घटकों- स्कॉटलैंड और नॉर्दर्न आयरलैंड- के सवालों को हल करना भी आसान नहीं होगा. कहने का मतलब यह है कि भले ही इस चुनाव से ब्रेक्ज़िट मामले में एक लंबे और उबाऊ प्रकरण का अंत हुआ है, पर इस मसले का अंतिम समाधान अभी बहुत दूर है.

इंग्लैंड के जिन इलाक़ों में ब्रेक्ज़िट के पक्ष में ज़्यादा वोट पड़ा था, वहाँ लेबर पार्टी को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है. इससे साफ़ है कि ब्रेक्ज़िट पर दूसरा जनमत संग्रह कराने का वादा पार्टी को भारी पड़ गया है. इसका दूसरा मतलब यह है कि ब्रेक्ज़िट के समर्थकों की संख्या कम नहीं हुई है. इसका एक संकेत मई में हुए यूरोपीय संसद के चुनाव में नाइजल फ़राज की ब्रेक्ज़िट पार्टी की सफलता से मिला था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री थेरेसा मे के नेतृत्ववाली कंज़रवेटिव पार्टी को भारी नुकसान हुआ था. वे ब्रेक्ज़िट की समर्थक नहीं थीं और यूरोपीय संघ से इस मामले पर समझौता करने में भी विफल रही थीं. इस चुनाव में जॉनसन और माइकल गोव पार्टी के नेता हैं, जिनकी अगुवाई में 2016 में ब्रेक्ज़िट का अभियान चला था.

उस अभियान के एक और किरदार फ़राज को इस चुनाव में सीटें नहीं मिली हैं, पर यह उनकी या धुर दक्षिणपंथ की हार नहीं है. यह कहने का आधार यह है कि ब्रिटिश संसद में धुर दक्षिणपंथ को कभी सफलता नहीं मिली है, पर उसका एक असर राजनीतिक विमर्श पर रहता है. जब अस्सी के दशक में मार्गरेट थैचर की कंज़रवेटिव पार्टी दक्षिणपंथ के दायरे को धुर दक्षिणपंथ तक ले गयी थी, तब ब्रिटिश धुर दक्षिणपंथ का प्रतिनिधित्व करनेवाली पार्टी नेशनल फ़्रंट का वोट बहुत घट गया था और जब थैचर से कुछ कम दक्षिणपंथी जॉन मेजर प्रधानमंत्री बने, तो फ़्रंट की वारिस ब्रिटिश नेशनल पार्टी को वोट मिला था. नब्बे के दशक में और बाद में लेबर पार्टी के शासन में उसका वोट बढ़ा भी था. बाद में इसका स्थान यूके इंडिपेंडेंस पार्टी ने ले लिया था, जिसके नेता के रूप में नाइजल फ़राज ने ब्रेक्ज़िट का अभियान चलाया था और जनमत संग्रह में जीत हासिल की थी. बाद में तो उन्होंने अपनी नयी पार्टी का नाम ही ब्रेक्ज़िट पार्टी रख लिया. जॉनसन और उनके अनेक नज़दीकी सहयोगियों के विचार धुर दक्षिणपंथ के विचारों से मेल खाते हैं. इसीलिए चुनाव नतीज़ों पर शुरुआती टिप्पणी करते हुए फ़राज ने कहा है कि शायद वे कुछ देर आराम करेंगे और राजनीति को दूर से देखेंगे. वे जानते हैं कि अभी बोरिस जॉनसन ही ब्रिटेन में धुर दक्षिणपंथ हैं.

(न्यूज़लाउंड्री पर 13 दिसंबर, 2019 को प्रकाशित)

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