ब्रिक्स: एक विफल अभियान!

वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की परस्पर निर्भरता पर देशों की आंतरिक राजनीति का असर पड़ना स्वाभाविक है. इसी तरह, वैश्विक राजनीति और आर्थिक गतिविधियां भी किसी देश की राजनीति और आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डालते हैं. इस पृष्ठभूमि में ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लूला पर चल रहे कथित भ्रष्टाचार के मुकदमे और इस मुकदमे के देश की राजनीति पर असर को देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा है कि इस प्रकरण से पांच देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- के संगठन ब्रिक्स का भविष्य खतरे में पड़ सकता है. 

दो साल से अधिक समय से ब्राजील के औद्योगिक उत्पादन में निरंतर कमी हो रही है. ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओइसीडी) का अनुमान है कि इसमें पिछले साल आयी 3.8 फीसदी की गिरावट इस वर्ष चार फीसदी हो सकती है, जो 1901 के बाद से सबसे बड़ी कमी होगी. मौजूदा स्थिति 2008 के चरम आर्थिक विकास से बिल्कुल विपरीत है, जब वित्तीय शोध संस्था स्टैंडर्ड एंड पूअर ने ब्राजील के राष्ट्रीय कर्ज को निवेश के स्तर का दर्जा दे दिया था. अब हालत यह है कि पांच आर्थिक संस्थानों ने चेतावनी दी है कि अगर वित्तीय प्रबंधन को समुचित तरीके से ठीक नहीं किया गया, तो देश का सार्वजनिक ऋण नियंत्रण से बाहर जा सकता है. सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के अनुपात में हर साल 10 फीसदी के दर से बढ़ रहा राष्ट्रीय कर्ज 2017 तक जीडीपी के 80 फीसदी तक पहुंच सकता है जो कि किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए बहुत खतरनाक है.

BRICS_leaders_in_Brazilटेलीग्राफ, लंदन के वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार एंब्रोस इवांस-प्रिटचार्ड ने लिखा है कि ब्राजील ब्रिक्स समूह का पहला ऐसा देश है, जो कई मोर्चों पर एक साथ बिखर गया है, लेकिन रूस और दक्षिण अफ्रीका भी बड़े संकट से घिरे हैं तथा चीन का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा है. सिर्फ भारत ही किसी तरह संतुलन बना रखने में एक हद तक सफल रहा है, हालांकि उसकी मुश्किलें भी कम गंभीर नहीं हैं. प्रिटचार्ड की राय में ब्रिक्स की अवधारणा अब अर्थहीन हो चुकी है. लूला प्रकरण के बाद ब्राजील की सरकार में भी तनाव बढ़ गया है और ऐसे में आर्थिक प्रबंधन को पटरी पर ला पाना संभव नहीं दिखता. देश में हर रोज छह हजार अच्छी नौकरियां खत्म हो रही हैं. आर्थिक सुधारों के पक्षधर बहुत जल्दी सत्ता परिवर्तन चाहते हैं, ताकि उन नीतियों में बदलाव हो सके जो लूला की विरासत हैं.

ब्राजील में पैदा हुए अंतरराष्ट्रीय पत्रकार और टिप्पणीकार पेपे एस्कोबार पूरे प्रकरण को वैश्विक व्यापार पर कब्जा जमाये आर्थिक संगठनों और उनके साथ खड़े देशों के निहित स्वार्थों को साधने की कोशिश का नतीजा मानते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि ब्रिक्स समूह और उसकी आर्थिक गतिविधियां आर्थिक महाशक्तियों के एकाधिकार के लिए बड़ी चुनौती हैं. रूस और चीन के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों की तनातनी लंबे समय से चल रही है. ब्रिक्स देशों में ब्राजील ऐसा देश है, जिसे अस्थिर करना अपेक्षाकृत आसान था. दुनिया की सातवींं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की प्रगति अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़ी मिसाल रही है. ऐसे में उसका पतन महाशक्तियों की नीतियों की वैधता के लिए जरूरी है. 

ब्राजील के बहाने ब्रिक्स को खत्म करने के ठोस कारण हैं, जिनमें ब्रिक्स बैंक का विकास, सदस्य देशों का अपनी मुद्रा में आपसी व्यापार को तरजीह देने की कोशिश, डॉलर की जगह भंडारण के लिए नये वैश्विक मुद्रा को स्थापित करने का प्रयास, अमेरिका के नियंत्रण से परे ब्राजील और यूरोप के बीच वृहत फाइबर ऑप्टिक टेलीकॉम केबल लगाना तथा दक्षिण अमेरिका को पूर्वी एशिया से केबल द्वारा जोड़ना आदि शामिल हैं. लूला ने बड़ी तेल कंपनियों को दरकिनार कर ब्रिक्स के समझौतों के तहत चीन के साथ करार किया था. कई रिपोर्ट ऐसी सार्वजनिक हो चुकी हैं, जिनमें अमेरिका और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लूला और मौजूदा राष्ट्रपति दिल्मा रौसेफ समेत ब्राजील की तेल कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों पर नजर रखने की बात कही गयी है. बहरहाल, अब देखना यह है कि ब्राजील की राजनीति आगामी दिनों में क्या करवट लेगी, और लूला के 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने की संभावना का स्वरूप क्या होगा. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि ब्रिक्स का भविष्य संकट में है. 

(13 मार्च, 2016 को प्रभात खबर में प्रकाशित)

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

Create a website or blog at WordPress.com

Up ↑

%d bloggers like this: