प्रॉपर्टी कंसलटेंट ‘नाइट फ़्रैंक’ ने ‘ग्लोबल स्टूडेंट प्रॉपर्टी 2019’ रिपोर्ट में बताया है कि पिछले साल भारत के स्टूडेंट हाउसिंग बाज़ार को पिछले साल 100 मिलियन डॉलर का निवेश मिला था. रिपोर्ट के मुताबिक, इस सेक्टर में असीम संभावनाएँ हैं. अभी माँग और पूर्ति में 80 लाख बिस्तरों का फ़ासला है. इसकी भरपाई के लिए यह बाज़ार 50 अरब डॉलर का निवेश पा सकता है.
वैसे, आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ़ इंश्योरेंस कंपनी का कहना है कि भारत का अगली बड़ी वित्तीय चुनौती रियल इस्टेट सेक्टर में ही आएगी, जहाँ बैंकों और शैडो बैंकों ने भरपूर क़र्ज़ बाँटा है, जिसे चुकाने में रियल इस्टेट कारोबारियों की लगी पड़ी है. सो, स्टूडेंट हाउसिंग बाज़ार (मुखर्जी नगर के किसी स्वैंकी प्रोपर्टी डीलर की दुकान का नाम हो सकता है 😉 ) में 50 तो छोड़िए, एक बिलियन डॉलर का निवेश भी मुश्किल दिख रहा है. लेकिन, इस पोस्ट का उद्देश्य इन बातों पर चर्चा नहीं हैं. मुझे ‘नाइट फ़्रैंक’ की रिपोर्ट की कुछ बातें जमी नहीं.
मिंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में कोचिंग और परीक्षा तैयारी केंद्रों का सालाना बिज़नेस 49,400 करोड़ (सात अरब डॉलर) का है. इस रिपोर्ट में कैम्ब्रिज इंटरनेशनल के सर्वे के हवाले से लिखा है कि भारत में स्कूल के बाहर कम-से-कम 55 फ़ीसदी छात्र ट्यूशन करते हैं. नेशनल सैंपल सर्वे कहता है कि 2014-15 में बंगाल के 89 फ़ीसदी, त्रिपुरा के 87 फ़ीसदी और बिहार के 67 फ़ीसदी पुरुष छात्र (माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के) ट्यूशन करते हैं. एशियन एज की एक रिपोर्ट में लिखा है कि दिल्ली में सीए, सीएस और सीएमए की तैयारी करनेवाले छात्र छह से दस घंटे रोज़ कोचिंग सेंटरों में बिताते हैं. इन कोचिंग सेंटरों में फ़ीस के रूप में उन्हें 20 हज़ार से ज़्यादा देने होते हैं.
ध्यान रखा जाना चाहिए कि तैयारी कर रहे छात्रों की संख्या या कोचिंग के बिज़नेस से जुड़े सही आँकड़े बहुत ज़्यादा हो सकते हैं क्योंकि न तो उनका कोई ठोस आकलन है और न ही नियमन.
Leave a Reply