ऑस्ट्रेलिया के संघीय चुनाव में तमाम अनुमानों के उलट दक्षिणपंथी लिबरल पार्टी गठबंधन ने सत्ता पर अपनी पकड़ को बरक़रार रखा है. इस गठबंधन को बहुमत के लिए ज़रूरी 76 सीटों से अधिक सीटें मिलती दिख रही हैं, वहीं लेबर पार्टी को 67 सीटें मिलने के आसार हैं.
इस चुनाव में जलवायु परिवर्तन, शिक्षा व स्वास्थ्य में अधिक निवेश, धनिकों पर अधिक कर लगाना, कामगार संघों को अधिक अधिकार देना, टैक्स हेवेन पर नियंत्रण, कंपनियों द्वारा मुनाफ़ा बाहर ले जाने पर रोक, राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त करना, प्रतीकात्मक राजशाही के ख़ात्मे जैसे मुद्दों पर लेबर पार्टी लड़ी थी. ऑपिनियन पोल से लेकर सट्टा बाज़ार तक यही राय बन रही थी कि लेबर नेता बिल शॉर्टेन ही अगले प्रधानमंत्री होंगे.
लेबर पार्टी के लिए इस चुनाव को ‘अनलूज़ेबल इलेक्शन’ कहा जा रहा था. लेकिन, नतीजे प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन के पक्ष में गए हैं. जानकार इस चुनाव की तुलना 1993 के चुनाव से कर रहे हैं, जिसे लिबरल पार्टी के लिए ‘अनलूज़ेबल इलेक्शन’ कहा गया था, परंतु तब लेबर पार्टी ने बाज़ी मार ली थी.
लेकिन 2019 के या हाल के कुछ चुनावों की तुलना 1993 से करना ठीक नहीं होगा. तब और अब में एक बड़ा अंतर है, और वह अंतर मीडिया, ख़ासकर मीडिया मुग़ल रूपर्ट मर्डोक के कई ब्राण्ड की मौजूदगी का है. यदि इस चुनाव का प्रचार अभियान देखा जाए, तो शॉर्टेन को मॉरीसन से कहीं ज़्यादा मर्डोक मीडिया के लगातार हमलों का सामना करना पड़ रहा था.
पिछले महीने जोनाथन माहलर और जिम रूटेनबर्ग ने ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में एक विस्तृत पड़ताल में बताया था कि किस तरह मर्डोक मीडिया ने हाल के सालों में दुनियाभर में, विशेष रूप से अंग्रेज़ीभाषी देशों में, दक्षिणपंथी राजनीति को बढ़ावा दिया है और प्रतिक्रियावादी पॉपुलिज़्म को उकसाया है.
यह अजीब विडंबना है कि मीडिया की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा नाम जूलियन असांज भी ऑस्ट्रेलिया से हैं और भ्रष्ट कॉर्पोरेट मीडिया का पर्याय बन चुके रूपर्ट मर्डोक भी इसी देश से आते हैं.
ऑस्ट्रेलिया के मीडिया बाज़ार में हिस्सेदारी और आबादी तक पहुँच के मामलों में मर्डोक मीडिया का आंकड़ा 60 से 70 फ़ीसदी है. इस चुनाव में मर्डोक मीडिया ने लेबर पार्टी के ख़िलाफ़ भयानक दुष्प्रचार किया. यहाँ तक लिखा गया कि लेबर नेता ने अपनी माता के संघर्ष को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया है ताकि उसका राजनीतिक फ़ायदा उठाया जा सके.
मर्डोक मीडिया ने अपने एजेंडे के हिसाब से लिबरल पार्टी के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों को भी उठाने और गिराने में बड़ी भूमिका निभाई है. चुनाव से पहले मर्डोक का आशीर्वाद पाने के लिए लेबर पार्टी से प्रधानमंत्री रहे जूलिया गिलार्ड और केविन रुड समेत अनेक नेता अमेरिका जाते थे ताकि यह मीडिया समूह उन्हें निशाने पर न रखे. पर, शॉर्टेन ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया था.
मर्डोक मीडिया के हमले पर राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नज़र बनी हुई थी और चुनाव से पहले इस संबंध में अनेक लेख आ चुके थे. ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में 15 मई को वरिष्ठ ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार रिचर्ड ग्लोवर के लेख का शीर्षक ही यह था- ‘क्या कोई राजनेता रूपर्ट मर्डोक के साम्राज्य से लोहा ले सकता है और जीत सकता है? इसकी परख ऑस्ट्रेलिया में होगी.’
जिस तरह से पश्चिमी देशों में मीडिया सरकार से लोहा लेती हैं, क्या हमारे देश मे ऐसा संभव हैं।
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