Calvino first tells you how to start reading this new novel, and his philosophical, or otherwise, and penetrating philippic goes on and on in every alternate chapter. This roller-coaster ride involves ideologies, governments, shadowy organisations, towns, cities, modern complexities, melancholia, dystopian present etc.
‘बुलशिट जॉब्स’ से मुक्ति के सवाल पर भी सोचा जाए!
युवाओं के पास दो ही विकल्प हैं. या तो वे कोई ‘बुलशिट जॉब’ पकड़ लें, जिससे किराया तो चुका सकें, पर भीतर घुटते रहें, या फिर आप लोगों की देखभाल करने या लोगों की ज़रूरत को पूरा करने का कोई काम करें, लेकिन ऐसे कामों में आपको इतनी कम कमाई होगी कि आप अपने परिवार को भी पाल-पोस नहीं पायेंगे.
‘नए युग में चीन के युवा’
चीन के स्टेट काउंसिल इन्फ़ॉर्मेशन ऑफ़िस ने चीनी युवाओं पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया है.
क्योंकि मुझ दमिश्की का पेशा मुहब्बत है…
निज़ार तौफ़ीक़ क़ब्बानी (मार्च 21, 1923 – अप्रैल 30, 1998) एक सीरियाई कूटनीतिक, कवि और प्रकाशक थे. वे समकालीन अरबी कविता के सबसे सम्मानित कवियों में शुमार किए जाते हैं.
क्रिप्टो कथा: स्पष्ट नियमन न होने से बढ़ती अड़चनें
पिछले साल ब्रोकर डिस्कवरी फ़र्म ब्रोकरचूज़र ने बताया था कि क्रिप्टो के भारतीय निवेशकों की संख्या 10.07 करोड़ है. इस हिसाब से संख्या के मामले में भारत दुनिया में पहले पायदान पर है.
शादी की आयु बढ़ाना बेमतलब पहल
दुनिया में सबसे ज़्यादा बालिका वधुएँ भारत में हैं और वैश्विक संख्या में उनका हिस्सा लगभग एक-तिहाई है. देश में 18 साल से कम आयु की ब्याहताओं की तादाद कम-से-कम 15 लाख है तथा 15 से 19 साल की क़रीब 16 फ़ीसदी लड़कियों की शादी हो चुकी है.
कृषि कानून समर्थक पत्रकारों की बेचैनी
अब जब क़ानून रद्दी में फेंके जा रहे हैं, तो सरकार के समर्थक पत्रकारों की प्रतिक्रिया देखना दिलचस्प है.
Sudhanshu Firdaus : The Young Bard of Trauma
What happens when a mathematician pens poems?
राज्य का नैतिक लबादा
सवाल यह है कि सरकार विषमता को रोक नहीं पा रही है या फिर रोकना ही नहीं चाहती है. या, फिर वही इस पूरी प्रक्रिया का प्रबंधन कर रही है या उसने देश की किस्मत वैश्विक और घरेलू कंपनियों के भरोसे छोड़ दिया है?
Bhagat Singh’s Letter to Sukhdev
This letter deals with the views of Bhagat Singh on the question of love and sacrifice in the life of a revolutionary. It was written on April 5, 1929 in Sita Ram Bazar House, Delhi. The letter was taken to Lahore by Shri Shiv Verma and handed over to Sukhdev. It was recovered from him... Continue Reading →
A Wishful Thinking Or A Misplaced Optimism!
It is high time for us to realise and to accept that there is no possibility of any ray of redress in the current economic and fiscal dungeon helmed by a political realm infected, for too long, at least for three decades, with two viruses- the Neo-con and the Neo-lib.
आर्थिक महाशक्तियां चिल्लर नहीं रखतीं…
चवन्नी का जाना बचे खुचे का जाना है. हम आज कुछ और गरीब हुए हैं. बस एक चवन्नी छाप उम्मीद है, सो है…
जेरूसलम में जीसस
अब्राहम की परंपरा से निकले तीन धर्मों- यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम- के प्रवर्तकों में अकेले जीसस ही हैं, जो जेरूसलम पहुँचे और वहाँ उन्होंने धर्म और ईश्वर के बारे में बयान दिया.
‘कैंसिल कल्चर’ ‘ऐक्शन’ का विकल्प नहीं है
'कैंसिल कल्चर’ को लेकर इतनी चिंता क्यों होनी चाहिए?
‘द प्रोटोकॉल्स ऑफ़ एल्डर्स ऑफ़ ज़ायन’ किताब की दिलचस्प कथा
बीसवीं सदी के बिल्कुल शुरू में यहूदियों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए यह फ़र्ज़ी किताब छापी गयी. वर्ष 1901-03 के बीच रूस में तैयार यह किताब बहुत जल्दी ओस्मानिया साम्राज्य (तुर्की) और यूरोप पहुँच गयी.
I In Togetherness: A Quest Within and Outside
The duo- Mee & Jey- has transformed that series of weekly posts of being together and enacting playfully in an immense collection and exhibition called I In Togetherness. I consider this series- visually stunning,
निजी क्षेत्र में आरक्षण समय की ज़रूरत है
निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की वैधता पर विचार करने से पहले यह उल्लेख कर देना ज़रूरी है कि आरक्षण के मसले पर मेरिट, सामान्य श्रेणी या अगड़ों के साथ अन्याय तथा निजी क्षेत्र की स्वायत्तता में बेमानी दख़ल जैसे तर्कों पर फ़ालतू चर्चा का अब कोई मतलब नहीं है.
तपिशे-शौक़ और ख़ुलूस का क़िस्सा
‘उसे सिर्फ़ इतना पता है कि यहाँ समानता नहीं है और वह होनी चाहिए. और इतनी आसान-सी चीज़ का होना क्यों इतना मुश्किल है…!’
A Soofi in the Brothel
How long Sushmas of the GB Road will get customers? Will this place will also be a past like Chawri Bazar soon?
चेहराविहीन दुनिया में कैसे रहा जायेगा!
आगम्बेन ने पूछा है- पॉलिटिक्स की जगह इकोनॉमिक्स को लानेवाले इस सिस्टम को क्या मानवीय कहा जा सकता है और क्या चेहरे, दोस्ती, प्यार जैसे संबंधों को खोने की भरपाई एक एब्सट्रैक्ट और काल्पनिक स्वास्थ्य सुरक्षा से हो सकती है?